(आज फदील
अल-अज़्ज़वी की कविताओं के पाठ का दिन है। संभव है अनुवाद में बहुत सी त्रुटियाँ
हों। नाम भी सही लिखा है या नहीं, पता नहीं। मुझे
बहुत अच्छी लग रही हैं और मैं उनके सुरूर में उनके तुरत-अनुवाद किए जा रहा हूँ।)
जब मेरे पास कोई काम नहीं होता/फदील अल-अज़्ज़वी
जब मेरे
पास कुछ काम नहीं होता तो अपनी लम्बी बोरियत के समय
मैं एक
जगह बैठकर धरती के गोले से खेलने लगता हूँ।
मैं ऐसे
देशों की स्थापना करता हूँ, जहां पुलिस और
पार्टियां नहीं होतीं
और उन
देशों को मिटा देता हूँ, जो अब
उपभोक्ताओं को आकर्षित नहीं कर पाते।
मैं
रेगिस्तानों में गरजती नदियों को उकेरता हूँ
और
महाद्वीपों और समुद्रों की रचना करता हूँ
फिर
उन्हें भविष्य के लिए अलग रख लेता हूँ कि शायद कभी ज़रूरत पड़े।
मैं
राष्ट्रों के नए रंगीन नक्शे तैयार करता हूँ:
जर्मनी
को लुढ़काकर प्रशांत महासागर में व्हेल मछलियों के साथ पटक देता हूँ
और गरीब
शरणार्थियों को
समुद्री
डाकुओं की नावों में बिठाकर
घने
कोहरे में
उसके
तटों तक पहुंचा देता हूँ।
वहां वे
बवेरिया के उन बगीचों के सपने देखते हैं,
जिनका
उनसे वादा किया गया था।
मैं
इंग्लैंड को अफगानिस्तान से अदल-बदल कर देता हूँ,
जिससे
वहाँ के नौजवान हर-मेजेस्टी द्वारा नवाज़ी गई मुफ्त हशीश का मज़ा ले सकें।
कुवैत को,
उसकी बाड़ों और बारूदी सुरंगों के बीच से
चोरी-चोरी उठाकर
चंद्रग्रहण
के चाँद से द्वीपों, कोमोरोस पर ले आता हूँ,
निश्चित
ही तेल के कुंओं सहित!
इसी समय
मैं बगदाद को
ढोल-नगाड़ों
के शोर के बीच
ताहिती
द्वीप पहुंचा देता हूँ।
सऊदी अरब
को मैं उसके शाश्वत मरुस्थल में
दुबके
पड़े रहने के लिए छोड़ देता हूँ,
जिससे वह
अपने ऊंटों की कुलीन नस्ल की पवित्रता को बचाकर रख सके।
इतना सब
कुछ मैं अमरीका को
उसके मूल
निवासी रेड-इंडियंस को सौंपने से पहले कर लेता हूँ,
सिर्फ
इसलिए कि इतिहास को उसका बहु-प्रतीक्षित न्याय मिल सके।
मैं
जानता हूँ कि दुनिया को बदलना इतना आसान नहीं है
लेकिन
फिर भी यह जरूरी तो है ही।
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जादुई कविता कैसे लिखी जाए!/फदील अल-अज़्ज़वी
जादुई
कविता लिखने से सरल कोई काम नहीं है।
अगर
आपमें तीव्र आकांक्षा और मजबूद इरादे हैं तब तो बेहद आसान।
इतना
दावे के साथ कह सकता हूँ कि यह उतना कठिन काम नहीं है।
एक रस्सी
लीजिए और उसे बादलों में बांध दीजिए।
उसका
दूसरा हिस्सा नीचे लटकने दीजिए।
बच्चे की
तरह रस्सी पकड़कर ऊपर चढ़ जाइए।
और फिर
रस्सी को नीचे फेंक दीजिए।
और फिर
हम आपको ढूंढ़ते रहेंगे, यूं ही
हर कविता
में।
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