Thursday, February 5, 2015

एक ऐतिहासिक लव जेहाद

(आज एक ऐतिहासिक 'लव-जेहादकी कहानी कहता हूँ।)
टांडा (उत्तरी बंगाल) के राजा सुलेमान किर्रानी और भूरिश्रेष्ठ (मध्य बंगाल) के राजा रुद्रनारायन और ओडिशा की संयुक्त फौज के बीच त्रिवेणी नामक स्थान पर भयंकर युद्ध हुआ थाजिसमें अफगान फौज की बुरी तरह हार हुई थी। हिन्दू राजाओं की इस विजय का सूत्रधार थाराजीवलोचन राय नमक सेनापतिजिसने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए अफगान सेनाओं को भारी नुकसान पहुंचाया था और उसे हिन्दू सेनाओं से अपमानजनक समझौता करना पड़ा। हार के बाद होने वाली समझौता वार्ताओं में किर्रानी की बहुत सुंदर युवा पुत्रीदुलारी हमेशा उपस्थित रहती थी। दोनों आपस में प्रेम करने लगे मगर धर्म बीच में आ गया। राजीवलोचन इस्लाम अपनाने के लिए तैयार नहीं था। आखिर दुलारी ने हिन्दू होना कुबूल कर लियाजिसे किर्रानी ने भी अपनी सहमति दे दी। लेकिन विवाह के बाद जब राजीवलोचन अपने घर आया तो उनके विवाह को धर्मविरोधी कहकर उनका बहिष्कार किया गया। जब उसने कहा कि दुलारी ने हिन्दू धर्म अपना लिया है तो पंडितों ने कहा कि धर्म परिवर्तन करके कोई हिन्दू नहीं हो सकता।
राजीवलोचन राय ने पंडितों से कहा कि अब गलती तो हो गई हैकोई प्रायश्चित्त बताइएजिससे मेरा प्रेम और विवाह भी सुरक्षित रहे और मुझे समाज से बहिष्कृत भी न होना पड़े। पंडितों ने जो प्रायश्चित्त तजवीज किया था वह बहुत कठिन था: जगन्नाथ पुरी के गर्भगृह में एक माह निराहार रहकर कठोर तपस्या करना। बेचारे राजीवलोचन ने यह भी कियाएक माह बाद जब वह गर्भगृह से बाहर आया तो सूखकर कांटा हो चुका था। मगर कोई न कोई बहाना बनाकर पुरी के पंडों ने यह प्रमाणपत्र देने से इंकार कर दिया कि उसका प्रायश्चित्त धर्म सम्मत तरीके से पूरा हो चुका है और अब उनका विवाह भी पूरी तरह स्वीकार्य है। वह बहुत गिड़गिड़ाया मगर पंडों ने एक न सुनी। निराश राजीवलोचन ने वहीं निश्चय कर लिया था कि अब न सिर्फ हिन्दू धर्म छोड़ देना है बल्कि इस धर्म और इसकी निशानियों को पूरी तरह नष्ट कर देना है।
वापस लौटकर दोनों पतिपत्नी सुलेमान किर्रानी के यहाँ आए और पुनः इस्लाम कुबूल कर लिया। उसने अपना नाम काला पहाड़ रख लिया और अपने हिन्दू राजा को छोडकर सुलेमान किर्रानी की सेना में शामिल हो गया। उसके बाद सुलेमान किर्रानी से इजाज़त लेकर वह सबसे पहले ओडिशा आया और पुरी के मंदिर को पूरी तरह तबाह कर दिया। कोणार्क और भुवनेश्वर के मंदिरों को भी उसी ने तहस नहस किया था। वहाँ के पुरोहितों को समुद्र किनारे रेत में ज़िंदा गाड़ दिया गयाजिन्हें बाद में जंगली जानवर खा गए।
उसने सिर्फ ओड़ीशा पर ही विजय प्राप्त नहीं की। बाद में उसने कूचबिहार होते हुए आसाम की ओर कूच किया और वहाँ का राज्य फतह करके वहाँ के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर का ध्वंस किया। बाद में वह पश्चिम की तरफ बढ़ा और अपनी मौत से पहले तक अवध तक के बहुत से छोटे-छोटे राज्य उसके कब्जे में आ चुके थे। वह जहाँ भी जाता वहाँ के मंदिरों को तोड़ता और लोगों लोगों का जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन करवाता और इस्लाम कुबूल न करने की हालत में उनकी हत्या कर देता।
ऐसे ही एक युद्ध के दौरान उसकी मौत ओडिशा के सम्बलपुर में हो गई थीजहाँ स्थित उसकी और दूसरे बहुत से सैनिकों की कब्रों को "हिन्दू देशभक्तों" ने 2006 में नष्ट कर दिया।
(इस कथा का कुछ हिस्सा तो इतिहास सम्मत है लेकिन कुछ हिस्सा ई थियोडोर किंग की कहानी, 'काला पहाड़से लिया गया है। इसके अलावा विकिपीडिया से भी कुछ जानकारी ली गई है। कहानी पढ़ते समय यह भी याद रखें कि कालापहाड़ एक कट्टर हिन्दू थाजिसने प्रेम के लिए भी इस्लाम कुबूल करने से इंकार कर दिया था। मजबूरन इस्लाम कुबूल करने के बाद वह कट्टर मुसलमान हो गया तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।)


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