दैनिक भास्कर के पिछले पृष्ठ पर आज पाँच मुख्य समाचार हैं जो एक साथ मिलकर एक विडंबना-कथा कहते हैं।
पहला है: औरंगाबाद (महाराष्ट्र) मंडी में एक किसान ने 382 किलो प्याज़ बेचा और जब अपना पैसा लेने गया तो पता चला उल्टे उसे ही 116 रुपए देने होंगे। प्रश्न यह है कि यह किसान वापस लौटकर क्या करेगा। क्या वह किसी से उधार लेकर सरकार के 116 रुपए लौटाएगा? क्या सीधे खेत जाएगा, कुएँ पर पड़ी बाल्टी की रस्सी निकालेगा और कोई बड़ा सा मजबूत वृक्ष ढूंढ़कर फाँसी लगा लेगा? उधार लेकर उधार चुकाने से बेहतर मुझे दूसरा विकल्प लग रहा है तो कृपया आश्चर्य न करें।
दूसरा है, बुद्धदेव जी की पिछली सरकार के विरुद्ध कोर्ट का निर्णय। 2006 में मार्क्सवादी सरकार ने सारे नियम-क़ानूनों को ताक पर रखकर टाटा के लिए किसानों की ज़मीन अधिगृहीत की थी। उसी मार्क्सवादी पार्टी की सरकार ने, जिसने तेलंगाना में आज़ादी के बाद देश के सबसे गौरवशाली जनयुद्ध का नेतृत्व किया था और जो वाकई एक समय मजदूर-किसानों की एकमात्र पार्टी थी। आज अगर इस पार्टी के लोग आदिवासियों के डर से तेलंगाना, छत्तीसगढ़ के जंगलों में घुस नहीं पाते तो क्या आश्चर्य।
तीसरा है, हरियाणा के मुख्यमंत्री का अपने लग्गुओं-भग्गुओं के साथ साइकिल पर विधानसभा पहुँचना। यह कोई आश्चर्य नहीं, बहुत से बड़े नेता ऐसी नाटक-नौटंकी करते रहते हैं। वे सोचते हैं कि ऐसा करने से वे भी माणिक सरकार जैसे दिखाई देने लगेंगे लेकिन साथ में छपे चित्र में ही उनका चेहरा देखकर ज़ाहिर हो जाता है कि वे क्या हैं। आश्चर्य न करें कि वापसी में उनकी साइकिल रिक्शे पर चढ़कर बंगले पहुँचती है। जिप्सी या स्कॉर्पियो में क्यों नहीं जाती यह आश्चर्य है।
चौथा है, "विज्ञापनों से सजेंगे ट्रेन के डिब्बे"। ट्रेनों को ललचाती चीजों के विज्ञापनों से पाट देने की कवायत चल रही है। कहते हैं, ट्रेनों को पेंट करने का खर्च बचेगा और उल्टे रेलवे को 1 से 6 करोड़ प्रति ट्रेन के हिसाब से आमदनी भी होगी। देश में लगभग 20000 ट्रेनें रोज़ चलती हैं। बताइए, व्यापारियों का कितना घाटा होगा! रेल के लिए और देश के लिए उनका यह त्याग देखकर आपको आश्चर्य तो नहीं हो रहा है?
अंतिम है, तेलंगाना सरकार की 500 रुपए में जेल की सैर कराने की योजना। शीर्षक है "500 रुपए में एक दिन जेल के मज़े लो।" भारत की जनता को जेल जाने के लिए पैसे खर्च करने पड़ें, इससे बड़े आश्चर्य की क्या बात होगी।
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पहला है: औरंगाबाद (महाराष्ट्र) मंडी में एक किसान ने 382 किलो प्याज़ बेचा और जब अपना पैसा लेने गया तो पता चला उल्टे उसे ही 116 रुपए देने होंगे। प्रश्न यह है कि यह किसान वापस लौटकर क्या करेगा। क्या वह किसी से उधार लेकर सरकार के 116 रुपए लौटाएगा? क्या सीधे खेत जाएगा, कुएँ पर पड़ी बाल्टी की रस्सी निकालेगा और कोई बड़ा सा मजबूत वृक्ष ढूंढ़कर फाँसी लगा लेगा? उधार लेकर उधार चुकाने से बेहतर मुझे दूसरा विकल्प लग रहा है तो कृपया आश्चर्य न करें।
दूसरा है, बुद्धदेव जी की पिछली सरकार के विरुद्ध कोर्ट का निर्णय। 2006 में मार्क्सवादी सरकार ने सारे नियम-क़ानूनों को ताक पर रखकर टाटा के लिए किसानों की ज़मीन अधिगृहीत की थी। उसी मार्क्सवादी पार्टी की सरकार ने, जिसने तेलंगाना में आज़ादी के बाद देश के सबसे गौरवशाली जनयुद्ध का नेतृत्व किया था और जो वाकई एक समय मजदूर-किसानों की एकमात्र पार्टी थी। आज अगर इस पार्टी के लोग आदिवासियों के डर से तेलंगाना, छत्तीसगढ़ के जंगलों में घुस नहीं पाते तो क्या आश्चर्य।
तीसरा है, हरियाणा के मुख्यमंत्री का अपने लग्गुओं-भग्गुओं के साथ साइकिल पर विधानसभा पहुँचना। यह कोई आश्चर्य नहीं, बहुत से बड़े नेता ऐसी नाटक-नौटंकी करते रहते हैं। वे सोचते हैं कि ऐसा करने से वे भी माणिक सरकार जैसे दिखाई देने लगेंगे लेकिन साथ में छपे चित्र में ही उनका चेहरा देखकर ज़ाहिर हो जाता है कि वे क्या हैं। आश्चर्य न करें कि वापसी में उनकी साइकिल रिक्शे पर चढ़कर बंगले पहुँचती है। जिप्सी या स्कॉर्पियो में क्यों नहीं जाती यह आश्चर्य है।
चौथा है, "विज्ञापनों से सजेंगे ट्रेन के डिब्बे"। ट्रेनों को ललचाती चीजों के विज्ञापनों से पाट देने की कवायत चल रही है। कहते हैं, ट्रेनों को पेंट करने का खर्च बचेगा और उल्टे रेलवे को 1 से 6 करोड़ प्रति ट्रेन के हिसाब से आमदनी भी होगी। देश में लगभग 20000 ट्रेनें रोज़ चलती हैं। बताइए, व्यापारियों का कितना घाटा होगा! रेल के लिए और देश के लिए उनका यह त्याग देखकर आपको आश्चर्य तो नहीं हो रहा है?
अंतिम है, तेलंगाना सरकार की 500 रुपए में जेल की सैर कराने की योजना। शीर्षक है "500 रुपए में एक दिन जेल के मज़े लो।" भारत की जनता को जेल जाने के लिए पैसे खर्च करने पड़ें, इससे बड़े आश्चर्य की क्या बात होगी।
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